Review of Antaraal

शीर्षक: अंतराल 

लेखक: पूनम पूर्णाश्री 





मेरे विचार :

मुख्य किरदार ने इस कहानी में अपने प्रियजनों का आभार व्यक्त करते हुए ज़िन्दगी की यात्रा का वर्णन किया है।शब्दों का प्रयोग इस प्रकार है मानो किसी आम आदमी  को ध्यान में  रख  कर लिखी गयी हो। भाषा स्वच्छ एवं साधारण  थी, जिसके चलते लेखक ने पाठक को एक आरामदायक यात्रा का एहसास दिलाया। लेखिका इस किताब में उस गाथा का वर्णन कर रही हैं जिसे हम सब को एक ना एक दिन ज़िन्दगी के मोड़ में मुलाकात करनी हैं. बचपन के गीत कौन भूलता हैं।  यह वो गीत हैं जिन्हे हम अक्सर मीठी यादों की तरह गुनगुनाया करते हैं। लेखिका ने उन्ही गीतों  के सहारे अपने पाठको के लिए एक अनोखी एवं आनंदमयी प्रस्तुति दी हैं ।



अगर कहानी के सारांश की बात करें तो बहोत ही साधारण शब्दों में इस तरह करा जा सकता हैं - बचपन ही हमारे आने वाले पचास सालो का स्तम्भ होता हैं। जिस पर  हमारा व्यक्तितत्व टिका होता हैं। मन की कुछ गांठे कभी नहीं खुलती। विचारो का मनोविज्ञान इसको संचालित करता हैं। 



कहानी के मध्यांतर में कई दफा सम्बंधित चित्रों एवं कविताओं  को अलौकिक स्थान प्रदान किया हैं। इनकी प्रस्तुति कहानी में चार चाँद लगा देती हैं। जिस तरह से ज़िन्दगी के पन्नो को जोड़ कर लेखिका ने कहानी को भिन्न प्रकार के रंग दिए है , वह तारीफ के काबिल हैं. जिस तरह से युवा पीड़ी उन्नति के मार्ग की और बढ़ती जा रही हैं, और उस रास्ते में चलते प्रकृति के साथ खेल रही हैं , वह काफी चिंतामयी विषय हैं। लेखिका ने काफी ऐसे रंगो से कहानी को रंगा हैं, जो आपके दिल के द्वार खोल देंगे ।



मूल्यांकन : ४  /५ 

Comments