सीमेंट से बने घरों को टूटते?
जिसकी एक-एक ईंट,
एक नयी पीढ़ी की प्रतीक थी।
हाँ,मैंने देखा था,
घरों को टूटते,
एक नहीं,दो नहीं, हज़ार बार।
हर एक ईंट के साथ,
जुड़े थे अनेक बचपन,
इन ईंट के टूटने के साथ,
नजाने कितनों के बचपन का
घोट दिया गया था गला।
घोट दिया गया था गला।
जरुरी था इनका टूटना?
टूटने के बाद खुश नहीं था कोई जन,
मैंने देखा था।
पर शायद, टूटना जरुरी था,
आत्मसम्मान की थी जो बात।
लेकिन, आत्मसम्मान और घर,
इनका कैसा वास्ता?
इनका कैसा वास्ता?
अगर हम इंसानों को पता होता,
तो शायद,एक भी घर न टूटता।
।हिना।
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